Thursday, December 31, 2009

Monday, December 28, 2009

थरूर जी कुछ ना कुछ करेंगे जरूर


विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने एक बार फिर सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है । लगता है थरूर साहब विवादों में घिरा रहने की आदत हो गयी है । लो इस बार उन्होंने सरकार की वीजा नीति की आलोचना ही कर डाली । विदेश मंत्री एस एम कृण्णा नाराज है ,ये समझ में नहीं आता है कि आखिर चाहते क्या है ।ये हो सकता मानवीय मुल्यों को ध्यान में रखकर थरूर ने ऐसा ,कहा हो । पर ऐसी बातों बंद कमरें में भी हो सकती है ,टयूट्र जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट में नहीं कहना चाहिए । जो भी होथरूर साहब जैसे सोचते है वैसे कहना का दम रखते है। चलो ऐसाकहकर थरूर साहब ने विपक्ष को आलोचना का मौका जरूरदे दिया है । शायद आपको याद होगा महात्मा गांधी केजन्म दिवस पर सरकार अवकाश के औचित्य पर सवाल खड़ा कर दिया था । थरूर साहब कुछ सोच कर ही इस तरह के बयान देते हो । उनका अपना नजरिया हो ,परंतु टयूट्र मंत्री ये ध्यान में रखना चाहिए कि भारत सरकार में महव्वपुर्ण पद पर काबिज हैं।

Monday, November 16, 2009

किस मुगालते में है बाल ठाकरे ?


किस मुगालते में है बाल ठाकरे ?
मुंबई ठाकरे की जमीदारी नहीं है । जो मन में आया सो कह दिया । सच बात तो यह ये है कि बाल ठाकरे को डर लग लग रहा कहीं इस बात बाजी राज ठाकरे ने मार ले । वैसे भी सचिन के यह कहने पर कि वे मराठी है और उस पर उन्हें गर्व है किन्तु पहले वे भारतीय है ,उन्हें धमकी कैसे दी जा सकती है ? सचिन ने काई राजनीतिक बयान नहीं दिया था । बाल ठाकरे व राज ठाकरे दोनों ही देश को तोड़ने का काम कर रहे है । वैसे बाल ठाकरे किस मुगालते में है ? बाल ठाकरे पुरे मराठी मानुष की आवाज नहीं है । लगता है कि लोकसभा व विधानसभा में हार के बाद भी सबक नहीं लिया । मराठी जनता शिवसेना को नकार दिया है । चाचा बतीजे की राजनीति के चलते देश के माहौल बिगड़ रहा है । क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन का अपमान करने से पहले बाल ठाकरे ने एक बार सोचना चाहिए था । वैसे भी सचिन ने सच ही कहा था । बाल ठाकरे जैसे छोटी सोच वाले व्यक्ति अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए किसी का भी अपमान कर सकता है । यह बात सत्य है कि बाल ठाकरे मंुबई वासियांे के बहुत कुछ किया है । लेकिन अपनी जिंदगी के अंतिम पलों में वे इस तरह के बयान देकर क्या हासिल करना चाहते है । राज ठाकरे को इस तरह राजनीति नहीं करनी चाहिए । बाल ठाकरे से भ्रम में न रहकर वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए । बाल ठाकरे के इस बयान में पुरे देश भर उनकी आलोचना हो रही है । बाल ठाकरे व राज ठाकरे जिन्ना की तरह कार्य कर रहे है ।देश अब बर्दाश्त नहीं करेगा । सच बात तो ये है कि बाल ठाकरे को अपने बतीजे राज ठाकरे से डर लगने लगा है । इसलिए जल्दबाजी में इस तरह के बयान दे दिया । मुझे नहीं लगता इस बयान से शिवसेना के वोट बैंक में इजाफा में होगा । असल में पिछले सत्ताह एसबीआई भर्ती परीक्षा में केवल मराठीमानुष का मुद्दा उठाकर राज ठाकरे मीडिया में थे ।अब सचिन का अपमान करके बाल ठाकरे मीडिया में बने हुए है । दोनों ही चाचा बतीजे को हमारी सलाह ये है कि अभी भी वक्त है सुधर जाओं । नहीं ंतो मराठी जनता ही तुम दोनों को सबक सिखाएगी ।

Sunday, October 18, 2009

आखिर कब दूर होगा अंधेरा ?


दोस्तों हर साल की तरह इस बार हमने अंधाधुन पटाखे फोडे़ ़,करोड़ो रूपय उड़ाए , पर क्या हासिल हुआ ? कुछ नहीं । अंधेरा से मेरा मतलब देश की गरीबी , अशिक्षा व वास्तविक समस्या से है ।क्या दिवाली पर तमाम तरीके से खर्च कर , हम किसी गरीब के चेहरे पर खुशियां ला पा रहे है ? नहीं । आखिर हम ऐसे क्यों है ? हम केवल अपना ही सोचते है । हम केवल अपना करियर , अपना परिवार और अपने लोगों के बीच ही सिमट कर रहे जाते है ।हर साल हम दिवाली पर अनावश्यक खर्च करते है । दिन रात मेहनत कर ,कमाते है व एक पल में उड़ा देते हैं। सवाल ये है कि हम अपनी खुशियों के बीच इतने खो गए है हमे कुछ और दिखता ही नहीं है। जब हम दिवाली पर कई प्रकार की मिठाई खा रहे हाते है ,तब कई लोग ऐसे होेंगे जो भूखे पेट सोने की कोशिश कर रहे होंगे , कई लोगों को यह रोशनी अच्छी नहीं लग रही होगी ,बल्कि उन्हे यह एहसास करा रही होगी कि तुम्हारे जीवन में अंधेरा है । हम लोग अपनी खुशियों में इतने लीन हो जाते है हमें दुसरों का दर्द दिखता ही नहीं है । हम लोग कभी कभी इस बात बहस कर लेते है कि हमे दिवाली पर ज्यादा पटाखें नहीं जलाने है ,ताकि पर्यावरण प्रदुषित न हो , पर परिणाम कुछ नहीं । सवाल ये है कि आखिर हम ऐसे क्यों है ? आखिर हम कब सोच के दायरे को बढा कर दुसरों की खुशियों के बारे में सोचेंगे ?

Friday, September 18, 2009

ट्वीटर मंत्री का टशन

भारतीय ट्वीटर और विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने इकोनॉमी क्लास को भेड़-बकरी वाला कहने से पहले परिणाम सोचे भी नहीं होगें। यदि वे सोच समझकर ये वक्तव्य अपनी साइट पर देते तो शायद देश में बवाल नहीं मचता। सोचने की बात यह हैं कि ट्वीटर मंत्री ने इसमे गलत क्या कहा है? उनका विरोध करने की जगह हमें उलटा इस वक्तव्य पर ट्वीटर मंत्री की तारीफ की जानी चाहिए की वे आम जनता से स्पष्ट तो कह रहे हैं उनकी इस देश में जगह क्या है एक नेता आमभारतीय के बारे में क्या सोचता हैं। सोचने की बात है कि शशि थरूर ने अपने वक्तव्य में क्या झूठ ? जिस तरह रेल के डिब्बे में इकोनॉमी क्लास होता है वैसे हीं हवाईजहाज में भी इकोनॉमी क्लास होता है। रेल के जनरल डिब्बे में देश की आधी से ज्यादा जनता सफर करती है उसकी हालात क्या है यह किसी से भी नहीं छुपा है। हर रेल में कम से कम दो डिब्बे जनरल के होते है उसमें लोगों की दुर्दशा भेड बकरी से ज्यादा खराब होती है। थरूर के इस बयान का पुरजोर विरोध होनें पर उन्होनें माफी तो मांग ली लेकिन कांग्रेस उन्हें माफ करने के मूड में नहीं दिख रही है। बयान बाजी के इस सिलसिलें में सभी अपना फायदा उठाने में लगे हैं देश में जिस तरह से सादगी का नाटक किया जा रहा है खबरिया चैनल इन दिखावटी नेताओं की सादगी को कवर करके मसालेदार खबर बनाने में लगे है।
लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इन बयानबाजी और खबरों से क्या लाभ मिलने वाला हैं। अपने सौ दिन की कार्यकारिणी में कोई बडा तीर ना मारने वाले प्रधानमंत्री सचमुच चिंता में है तो उन्हें सबसे पहले अपने 78 सदस्य वालें मंत्रिमंडल में कटौती करनी चाहिए। वैसे सरकार को ऐसे ट्वीटर मंत्रियों की जरूरत हीं क्या है जो आमजनता के बलबूते पर खडें होकर उन्हें हीं कुचलने में लगे हो। जिन्हें फाइव स्टार होटलों में रहने की आदत हो वे गरीबी के दर्द को क्या समझेंगे। मंत्रियों की भीड भरे मंत्रिमंडल से आम जनता को क्या फायदा पहुंचा जो अब पहुंचेगा। मंत्रियों की छटनी करने से सरकार की सचमुच में बचत होगी। कई हारे हुए नेताओं ने अपने घर तक खाली नहीं किए है वह सरकारी संपत्ति पर आजीवन हक समझते है। यदि सरकार सचमुच में आम लोगों के लिए कुछ करना चाहती है तो सादगी के नाटक को बंद कर गरीबों की समस्या पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वैसे भी कुछ मंत्रियों के इकोनॉमी क्लास में सफर से कोई गरीबी दूर होने वाली नहीं है और मीडिया को भी इन दिखावटी नेताओं के पीछे - पीछे दौडने से बचना चाहिए। बडे ही शर्म की बात होगी हमारे देश के मंत्री इकोनॉमी क्लास में सफर करे और देश के बिजनस मेन बिजनस क्लास में सफर करें। इन बिजनेस मेन के पास जो अतिरिक्त पैसा आता है वह आम लोगों का हीं होता है वैसे सरकार को ये बिजनेस व इकोनॉमी क्लास का चक्कर ही खत्म कर देना चाहिए ताकि गरीबी अमीरी का खेल ही समाप्त हो जाए।

Tuesday, September 8, 2009

आंतकवाद पर हावी मोहब्बतवाद


आपको यह जानकर हैरानी होगी कि , हमारे देश में मौतें आंतकवाद से ज्यादा मोहब्बतवाद के कारण होती है । मोहब्बत के लिए मौत का सजा देना आम होता जा रहा है ,तभी तो पिछले महीने हरियाणा के हिसार जिलें के सुबाना गांव में एक युवा जोडे को लड़की के घरवालों ने पीट पीट कर मार डाला ,वहीं मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में भी एक प्रेमी जोड़े को बीच चैराहे पर लड़की के भाई ने काट डाला था ।इस तरह हमारे देश में लाखों लोगो की जान जा चुकी है । हिसाब रखने वाले तो गिनकर तक बता दिया है । आंकडो के अनुसार इश्क़ विश्क मंे जान देने वालों की तादात ,आंतकवाद से वजह से जान गंवाने वालों से थोड़ी बहुत ज्यादा नहीं ,कई गुना ज्यादा है । आंकडो पर नजर डाली जाए तो सन 2006 में देश भर में जो कुल 36 हजार लोग मारे गए , उनमें से 2547 प्यार के चक्कर में ही मारे गए थे ,जबकि आंतकवाद के चक्कर में केवल 894 निकले । यह किस्सा केवल 2006 का ही नहीं ,यह तो हर साल की कहानी है । हमारे यहां जिस तरह आंतकवाद का डर बताया जाता है , उससे ज्यादा डर तो मोहब्बतवाद से लगना चाहिए। मजे की बात यह है कि इश्क विश्क में जान देन वाले में आंध्र प्रदेश आगे निकल गया है । उनका स्कोर 405 का रहा यानी मोहब्बत के शहीदों में हर छटा आदमी आंध्रप्रदेश का ही था । 279 संख्या के साथ यूपी दूसरे व 233 अंको के साथ मप्र तीसरे स्थान पर है । हालांकि आंध्रप्रदेश इस मामले में आगे निकल गया हो ,उसमें हरियाणा तेजी से बढ़ रहा है वहां आज ही एक प्रेमिका को गांव वालों ने मौत के घाट उतार दिया । वहीं आंतकवाद के कारण जम्मू कश्मीर सबसे आगे है , जहां पर 2006 में 1861 लोग मारे गए , दूसरे नंबर पर 152 संख्या के साथ मणिपुर रहा और तीसरे नंबर पर 145 अंको के साथ झारखंड है।यानी हमारा देश में दो तरह के आंतको का बोलबाला है । दोनो आंतको के अलग अलगा इलाकों में जोर है । फिर भी मोहब्बतविरोधी आंतक की चुनौती ज्यादा बड़ी है। पर अफसोस की बात यह है कि हमारी सरकार आंतवाद से लड़ने के लिए तैयार है परंतु इस नरभक्षी आंतक से लड़ने के लिए नहीं ।

Sunday, August 2, 2009

कलयुग का स्वयंवर खत्म



चलो राखी की नौंटकी खत्म तो हुई , आखिरकार ने राखी ने कनाडा के बिजनेसमैन इलेश को जीवनसाथी चुन ही लिया । पिछले दो माह से चल रही नौटंकी पर विराम लग गया । दर्शको के बीच हमेशा चर्चा में रहना राखी केा खुब आता है, वैसे अभी राखी ने शादी नहीं की । अब देखना ये है कि आगे शादी को मीडिया कैसे दिखाता है ।

क्या हिन्दुस्तान बदल रहा है ?


इमरान हाशमी को पाली हिल के नजदीक निबाना कोओपरेटिव सोसाइटी ने फ्लैट देने से मना क्या कर दिया ,मीडिया को मसाला मिल गया , मिले भी क्यो ना ,सेलिब्रेटी जो है परंतु उनका क्या जो आम इंसान है ,चिंता इमरान हाशमी को घर ने मिलने की नहीं है ं, चिंता लाखों आम लोगों की है , जिनकी समस्याओं पर कोई गौर नहीं करता है । कोई मांसाहारियों को घर देना नही चाहता तो कोई दलितों को घर नहीं देता । एक वाक्या याद आ रहा है , एक छोटी जाति दोस्त के लिए रायपुर में घर ढूढंने में बड़ी समस्याओं को सामना करना पड़ा था ,कई मकान मालिकों ने केवल निम्न जाति होने को कारण घर देने से मना ही कर दिया , किसी ने कहा तो हम तो पंडित है ,घर नही दे सकते । दुख तो इस बात यह है , यदि सेलिब्रेटी के साथ ऐसा होता है तो चर्चा व चिंता का विषय हो जाता है , चिंता तब नहीं होती ,जब सरकार की अनेकों योजना के तहत आम लोगों को घर नहीं मिलता है । अभी भी देश के कई झुग्गीवासियों को सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला । इमरान हाशमी तो सुपर स्टार है , नया घर खरीद लेंगे । असल चिंता यह है कि सरकार ऐसी समस्या के प्रति कितनी संजीदा है ।
अब सवाल ये है , क्या वाकई हिंदुस्तान बदल रहा है ? शायद नहीं !

Wednesday, July 29, 2009

ये कैसी जल्दी ?

मु़झे टीवी प़त्रकारिता े फील्ड में आए महज एक साल हुए हैं। दास्तों एक साल से मन में एक ही सवाल घुम रहा है ,आखिर ये कैसी जल्दी है ? जल्दी के चक्कर में कई बार गलत खबर ही ब्रेक कर दी जाती है , शायद ये सब टी आर पी के कारण होता है ,पर ऐसी टी आर पी का क्या मतलब ? कई बार अपने प्रतियोगी चैनल के पीछे करने की होड में विजुअल तक गलत आंन एयर कर दिए जाते है । न्यूज रूम के अंदर एक ही आवाज गुंजती है , काटो३ काटो३ काटोदोस्तों जो भी गडबड होता है काटो काटो के कारण ही होता है । मेरा मानना है कि सनसनी से ज्यादा समझ जरूरी है , प्रतियागिता इतनी ज्यादा बढ गई है कि कई बार ये समझ में नही आता है कि ,आखिर हम क्या दिखा रहा है । खबरों के जल्दी दिखाने से बेहतर होगा कि हम खबरों को सही आकलन कर दिखाएं , सनसनी फैलाने से क्या मिल रहा है ं। ये बात सही है कि बाजारवाद के इस युग में पत्रकारिता प्रभावित हुई , परंतु पत्रकारिकता के जीवित रखना है तो खबरों के साथ कोई समझौतानकरें । पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि आजकल इन मीडियों संस्थानों की बागडोर मीडिया के दलालों के हाथ में है , जिनका मकसद केवल पैसा कमाना है ।यदि ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों बाद प़त्रकारिता खत्म हो जाएगी,खबरों का समझौता होता रहेगा और दलालों के झोली भरती रहेगी ।

ये कैसी जल्दी ?

मु़झे टीवी प़त्रकारिता े फील्ड में आए महज एक साल हुए हैं। दास्तों एक साल से मन में एक ही सवाल घुम रहा है ,आखिर ये कैसी जल्दी है ? जल्दी के चक्कर में कई बार गलत खबर ही ब्रेक कर दी जाती है , शायद ये सब टी आर पी के कारण होता है ,पर ऐसी टी आर पी का क्या मतलब ? कई बार अपने प्रतियोगी चैनल के पीछे करने की होड में विजुअल तक गलत आंन एयर कर दिए जाते है । न्यूज रूम के अंदर एक ही आवाज गुंजती है , काटो३ काटो३ काटोदोस्तों जो भी गडबड होता है काटो काटो के कारण ही होता है । मेरा मानना है कि सनसनी से ज्यादा समझ जरूरी है , प्रतियागिता इतनी ज्यादा बढ गई है कि कई बार ये समझ में नही आता है कि ,आखिर हम क्या दिखा रहा है । खबरों के जल्दी दिखाने से बेहतर होगा कि हम खबरों को सही आकलन कर दिखाएं , सनसनी फैलाने से क्या मिल रहा है ं। ये बात सही है कि बाजारवाद के इस युग में पत्रकारिता प्रभावित हुई , परंतु पत्रकारिकता के जीवित रखना है तो खबरों के साथ कोई समझौतानकरें । पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि आजकल इन मीडियों संस्थानों की बागडोर मीडिया के दलालों के हाथ में है , जिनका मकसद केवल पैसा कमाना है ।यदि ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों बाद प़त्रकारिता खत्म हो जाएगी,खबरों का समझौता होता रहेगा और दलालों के झोली भरती रहेगी ।

Tuesday, July 28, 2009

सच का नाटक

आपके षादी से पहले कितनी महिलाओं के साथ षारिरिक संबंध रहें हैं?
क्या आप कच्ची उम्र में ही गर्भवती हो गई थी ?
आपको लग रहा है ये क्या लिख रहा है , दोस्तों कुछ इसी तरह के सवाल पुछे जा रहे है ‘सच का सामना ’रिएलिटी षो में । क्या आपने कभी सोचा है , इस तरह के सवाल पुछने का मकसद क्या होगा ? इस तरह के सवाल से लोगों का घर ही बर्बाद होगें। न जाने , विदेषों में ही कितनों के घर तोड़ने के बाद अब ये षो भारत में आया । आखिर ये सवाल हैं कि क्या से सचमुच ‘सच का सामना ’है? सच का माने तो यंे षो अमेरिका का है, कुछ अमीरजादों का है ,कुछ असामजिक लोगों को है ,पर सवाल ये है कि इसका आधे भारत से क्या वास्ता है जो गरीब है । हमारा दुर्भाग्य है कि चंद पैसों के चक्कर में हम सभ्य समाज का खराब करने का प्रयास कर रहे है ,नइ्र्र पीढी को भेट कर रहे है ।
खुद अमेरिका में इस षो की आलोचना हुई है ,यहां कई प्रतिभागियों के घर टूट चुकें है । ये हिंदुस्तान है ,अमेरिका या युरोप नहीं ,जो इस तरह के घटिया षो प्रसारित किया जाएं। जीवन में सच कई तरह के होते है ,परंतु ऐसे सच का क्या मतलब जिससे जीवन ही बर्बाद हो जाए । यह भी एक विडंबना है कि देष के नीति निर्धारक रोक की मांग तब करते है जब यह कार्यक्रम या घटना घर घर तक पहुंच चुका होता है ।सरकार को प्रसारण पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए था। वैसे भी भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंत़त्रता है साथ ही वह भारत की संप्रभुता ,अंखडता , राज्य की सुरक्षा संरक्षित करने के लिए बाध्य भी करती है । इस लिहाज से सदाचार व सभ्य आचरण बिगाडने के लिए इस कार्यक्र्रम को दोशी ठहराया जा सकता है ,चाहे इसमें कितना ही सच समाहित हो । यदि भारत सरकार को जरा सा भी भारतीयता का अहसास है तो तुरंत ही इस ‘सच का सामना‘ या फिर सच का नाटक पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

Friday, June 5, 2009

रीयल लाइफ में विवाह

आपको यह जानकार की खुशी होगी कि , सूरज बड़जात्या की फिल्म विवाह का वो नजार भोपाल में दिखने को मिला जिसमें शाहिद कपूर इस फिल्म की हीरोइन से अस्पताल में विवाह करता हैं।इस शादी में न तो मंडप सजा, ना बैंड बाजे बजे ।दरअसल विवाह के पहले , दुल्हन बीमार पड़ गई । तय मुहूर्त पर निकाह के लिए दूल्हे राजा बारात लेकर अस्पताल पहंुचे । और निकाह आई सी यू वार्ड में पढा गया । भोपाल के बरखेड़ा पठानी इलाके में रहने वाली नाज के घर आज बारात आना थी। पिछले कई दिनों से शादी की तैयारियां चल रही थीं , लेकिन दो दिन पहले नाज बुरी तरह बीमार पड़ गई , उसे राजधानी के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है । नाज के बीमार होने के कारण आ सी यू में सारी रस्में हुई । मौलवी के कहने पर दुल्हा दुल्हन ने जैसे ही कहा निकाह कबूल जा पहुचा तो बाराातियों और चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई ।

Thursday, June 4, 2009

शर्म करो पुलिसवालों

बैतूल जिला जेल में दहेज एक्ट के तहत बंद एक दलित महिला ने पुलिस कर्मिय्ाों पर सनसनीखेज आरोप लगाया है महिला का कहना है कि आमला थाने में जब दहेज प्रताड़ना के मामले में हिरासत मे लिया गया तब पुलिस वालो ने सामूहिक बलात्कार किया ।महिला के खाक वर्दी को दागदार करने वाले आरोप से बैतूल से लेकर भोपाल तक पुलिस महकमंे में हडकम्प मच गय्ाा। जिसके चलते डीजीपी के निर्देश पर होशंगाबाद रेंज के डीआईजी ब्रजभूषण शर्मा ने आमला थाने पहुंचकर मामले की गहन जांच पडताल की। प्राथमिक जांच के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारिय्ाों के निर्देश पर आमला थाने में मिश्रा एवं अन्य्ा के खिलाफ धारा 376 के तहत अपराध पंजीबद्घ किय्ाा गय्ाा है। जबकि आमला थाना प्रभारी अनिल सिंह ठाकुर एवं प्रधान आरक्षक नन्द किशोर मिश्रा को लाइन अटैच कर दिय्ाा गय्ाा है। साथ ही मामले की गहन जांच पडताल के लिए अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक धर्मेन्द्र सिंह भदौरिय्ाा के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन किय्ाा गय्ाा है। जांच दल में एसडीओपी श्रीमती सीमा अलावा, झ्ाल्लार थाना प्रभारी शैलेन्द्र शर्मा एवं गुंडा स्क्वाड प्रभारी सुनील लाटा को शामिल किय्ाा गय्ाा है। बताय्ाा जाता है कि डीआईजी ने थाना परिसर सहित घटना स्थल का बारिकी से निरीक्षण करने के बाद आमला थाने में पदस्थ पुलिस कर्मिय्ाों से गहन पूछताछ की। जांच पडताल के बाद डीआईजी के निर्देश पर पीडित महिला की शिकाय्ात पर आमला थाने में धारा 376 के तहत मिश्रा सहित अन्य्ा के खिलाफ मामला पंजीबद्घ कर लिय्ाा है। ’आमला पुलिस थाने में पुलिस कर्मिय्ाों द्वारा बलात्कार करने का आरोप लगाने वाली महिला बंदी के पुत्र्ा कैलाश बामने ने बताय्ाा कि थाना प्रभारी एवं मिश्रा पुलिस वाले मेरे घर गय्ो थे एवं मुझ्ासे बोले कि दस हजार रूपय्ो का इंतजाम कर ले वरना तुझ्ो चार दिनों में गुंडा स्क्वाड के हाथों पिटवा कर जेल में डलवा देगे। तेरे मां, बाप को भी जेल में सडवा देगें। मंगलवार को मेरी मां को गिरफ्तार करके लाय्ाा गय्ाा। तब मैं खाना पहंचाने आय्ाा था तो वह बहुत परेशान थी तथा मुझ्ो थाने से निकालने के लिय्ो कह रही थी। पुलिस ने मेरी मां से कोई बात नहीं करने दी। मेरी मां का पेट बंधा हुआ था। मां बता रही थी कि कमर में बहुत दर्द हो रहा है। घटनाक्रम बताते हुए कैलाश की आंखे भर आई थी। कैलाश ने दोषी पुलिस कर्मिय्ाों पर कडी कायर््ावाही की मांग की है।‘ पीडित महिला के वकील रमेश दामले ने पत्र्ाकारों को बताय्ाा कि ’मैं दलित महिला से मिलने जेल में गय्ाा था। वहाॅ मैंने देखा कि उसे चलने में बहुत ही मुश्किल हो रही है, उसके शरीर पर खरोंच के निशान है। उसकी शारीरिक स्थिति अंत्य्ात दय्ानीय्ा है। महिला ने बताय्ाा कि मैंने एक नींद ले ली थी, अर्धरात्र्ाि को लगभग 12 बजे एक पुलिस वाले ने मुझ्ो उठाय्ाा एवं अंधेरे कमरे में ले जाने के लिय्ो जबरदस्ती करने लगा मैंने मना किय्ाा तो दो तीन पुलिस वाले आ गय्ो। उन्होंने उठाकर मुझ्ो अंधेरे कमरे में ले गय्ाा जहां पर टीआई भी थे। सभी ने दारू पी रखी थी। सबने मिलकर एक-एक करके मेरे साथ बलात्कार किय्ाा। मैं स्वय्ां अपनी मुवक्किल से मिलकर आय्ाा हूूं। उसने बताय्ाा कि मेरे साथ चार लोगों ने पुलिस कस्टडी में बलात्कार हुआ है। हम पूरी कानूनी कायर््ावाही करेगें। जो भी कानूनी कदम उठाना पडेगा मैं उठाऊंगा। भले ही चाहे वह प्रशासन के खिलाफ ही क्य्ाों न हो।‘ अब इस मामले के बाद एसपी दोषियों पर सख्त कार्रवाई की करने की बात कह रहे है । इस मामले के उजागर होने के बाद सबसे ज्यादा सोचने वाली पहेलू यह है कि यदि देश के रक्षक ही ऐसे कार्य करने लगे तो ,देश की बहू बेटियों की रक्षा कौन करेगा?

Tuesday, June 2, 2009

मई में पड़े पांच शनि और रवि

आपको यह जानकार हैरानी होगी , मई महीने में पांच शनि और रविवार पड़े अगर आपने मई महीने के पांचो शनिवार और रविवार को जमकर एंज्वाय किया हैं तो आप बहुत सौभाग्यशाली हैं। ज्योतिषाचार्यो की माने तो यह संयोग 783 साल बाद ही आएगा । यह संयोग खुशी देने वाला है । अन्य संयोगो की तरह पांच शनिवार और पांच रविवार का संयोग से कोई नुकसान नहीं होता है । हालांकि इसके चलते दशाए बदलती हैं। काल गणना के अनुसार भी इसे फायदेफंद होता है। ईश्वर के खेल निराले हैं वह अपने इस तरहे प्रस्तुत करता है कि हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियां उसके आगे छोटी पड़ जाती है। ऐसे में अगर ज्योतिष और काल गणना से जोड़ दिया जाए तो शायद इन संयोगो का लाभ मानव कल्याण के लिए उठाया जा सकता है।

Monday, June 1, 2009

कमजोर छत्तीसगढ़ सरकार

छत्तीसगढ सरकार बार बार दावा करती हेै नक्सल मोर्चे पर कामयाबी मिल रही है , लेकिन सच्चाई यह है कि नक्सली लगाातार सरकार पर भारी पड़ रहे है । बात चाहे नक्सली हमले की हो हिंसक घटनाओं में हुई मौतों की, नक्सली पुलिस फोर्स पर चैगुना भारी पड़े है ।प्रदेश में पिछले कई सालों से पुलिसिया अभियान चलाया जा रहा है आखिर हासिल क्या हुआ , क्या नक्सली हिंसा बंद हो पाई?क्या नक्सलियों के सोच में अंतर नहीं आया ?नहीं । राज्य में रहने वाले कोई भी व्यक्ति इन तमाम सवालों के उत्तर ने में ही देगा । लेकिन इसके बावजूद प्रदेश के ग्रह मंत्री अपनी सरकार तारीफ करने से नहीं थक रहे है ,उनका कहना है कि नक्सलियों में पुलिस का खौफ बढ़ रहा है ,लेकिन हम तो मं़त्री जी यह आप से यह कहने चाहते है कि यदि सच ें सरकार को कामयाबी मिल रही तो , ये आंकडे क्या गलत बोल रहे है ? आंकड़े पर नजर डालेे 2005 से लेकर 2009 तक तमाम दावों के बावजूद पुलिस ्रढाई सौ नक्सलियों को भी नहीं मार सकी जबकि इसी अवधि में नक्सलियों ने एक हजार सुरक्षाबल ,स्थानीय नागरिकों को मारने में सफल रहे है मंत्री जी आपसे बस यह कहना चाहते है कि नक्सलियों के किले पर फतह पाना है तो अपनी रणनीति और नीतियों पर विचार कर एक ठोस पहल करनी चाहिए।

Saturday, May 23, 2009

hiiiiiiiiiiiiii