लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इन बयानबाजी और खबरों से क्या लाभ मिलने वाला हैं। अपने सौ दिन की कार्यकारिणी में कोई बडा तीर ना मारने वाले प्रधानमंत्री सचमुच चिंता में है तो उन्हें सबसे पहले अपने 78 सदस्य वालें मंत्रिमंडल में कटौती करनी चाहिए। वैसे सरकार को ऐसे ट्वीटर मंत्रियों की जरूरत हीं क्या है जो आमजनता के बलबूते पर खडें होकर उन्हें हीं कुचलने में लगे हो। जिन्हें फाइव स्टार होटलों में रहने की आदत हो वे गरीबी के दर्द को क्या समझेंगे। मंत्रियों की भीड भरे मंत्रिमंडल से आम जनता को क्या फायदा पहुंचा जो अब पहुंचेगा। मंत्रियों की छटनी करने से सरकार की सचमुच में बचत होगी। कई हारे हुए नेताओं ने अपने घर तक खाली नहीं किए है वह सरकारी संपत्ति पर आजीवन हक समझते है। यदि सरकार सचमुच में आम लोगों के लिए कुछ करना चाहती है तो सादगी के नाटक को बंद कर गरीबों की समस्या पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वैसे भी कुछ मंत्रियों के इकोनॉमी क्लास में सफर से कोई गरीबी दूर होने वाली नहीं है और मीडिया को भी इन दिखावटी नेताओं के पीछे - पीछे दौडने से बचना चाहिए। बडे ही शर्म की बात होगी हमारे देश के मंत्री इकोनॉमी क्लास में सफर करे और देश के बिजनस मेन बिजनस क्लास में सफर करें। इन बिजनेस मेन के पास जो अतिरिक्त पैसा आता है वह आम लोगों का हीं होता है वैसे सरकार को ये बिजनेस व इकोनॉमी क्लास का चक्कर ही खत्म कर देना चाहिए ताकि गरीबी अमीरी का खेल ही समाप्त हो जाए।
Friday, September 18, 2009
ट्वीटर मंत्री का टशन
भारतीय ट्वीटर और विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने इकोनॉमी क्लास को भेड़-बकरी वाला कहने से पहले परिणाम सोचे भी नहीं होगें। यदि वे सोच समझकर ये वक्तव्य अपनी साइट पर देते तो शायद देश में बवाल नहीं मचता। सोचने की बात यह हैं कि ट्वीटर मंत्री ने इसमे गलत क्या कहा है? उनका विरोध करने की जगह हमें उलटा इस वक्तव्य पर ट्वीटर मंत्री की तारीफ की जानी चाहिए की वे आम जनता से स्पष्ट तो कह रहे हैं उनकी इस देश में जगह क्या है एक नेता आमभारतीय के बारे में क्या सोचता हैं। सोचने की बात है कि शशि थरूर ने अपने वक्तव्य में क्या झूठ ? जिस तरह रेल के डिब्बे में इकोनॉमी क्लास होता है वैसे हीं हवाईजहाज में भी इकोनॉमी क्लास होता है। रेल के जनरल डिब्बे में देश की आधी से ज्यादा जनता सफर करती है उसकी हालात क्या है यह किसी से भी नहीं छुपा है। हर रेल में कम से कम दो डिब्बे जनरल के होते है उसमें लोगों की दुर्दशा भेड बकरी से ज्यादा खराब होती है। थरूर के इस बयान का पुरजोर विरोध होनें पर उन्होनें माफी तो मांग ली लेकिन कांग्रेस उन्हें माफ करने के मूड में नहीं दिख रही है। बयान बाजी के इस सिलसिलें में सभी अपना फायदा उठाने में लगे हैं देश में जिस तरह से सादगी का नाटक किया जा रहा है खबरिया चैनल इन दिखावटी नेताओं की सादगी को कवर करके मसालेदार खबर बनाने में लगे है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
yahi bhartiy netao ka asli chehra hai ...
Post a Comment