Sunday, October 18, 2009

आखिर कब दूर होगा अंधेरा ?


दोस्तों हर साल की तरह इस बार हमने अंधाधुन पटाखे फोडे़ ़,करोड़ो रूपय उड़ाए , पर क्या हासिल हुआ ? कुछ नहीं । अंधेरा से मेरा मतलब देश की गरीबी , अशिक्षा व वास्तविक समस्या से है ।क्या दिवाली पर तमाम तरीके से खर्च कर , हम किसी गरीब के चेहरे पर खुशियां ला पा रहे है ? नहीं । आखिर हम ऐसे क्यों है ? हम केवल अपना ही सोचते है । हम केवल अपना करियर , अपना परिवार और अपने लोगों के बीच ही सिमट कर रहे जाते है ।हर साल हम दिवाली पर अनावश्यक खर्च करते है । दिन रात मेहनत कर ,कमाते है व एक पल में उड़ा देते हैं। सवाल ये है कि हम अपनी खुशियों के बीच इतने खो गए है हमे कुछ और दिखता ही नहीं है। जब हम दिवाली पर कई प्रकार की मिठाई खा रहे हाते है ,तब कई लोग ऐसे होेंगे जो भूखे पेट सोने की कोशिश कर रहे होंगे , कई लोगों को यह रोशनी अच्छी नहीं लग रही होगी ,बल्कि उन्हे यह एहसास करा रही होगी कि तुम्हारे जीवन में अंधेरा है । हम लोग अपनी खुशियों में इतने लीन हो जाते है हमें दुसरों का दर्द दिखता ही नहीं है । हम लोग कभी कभी इस बात बहस कर लेते है कि हमे दिवाली पर ज्यादा पटाखें नहीं जलाने है ,ताकि पर्यावरण प्रदुषित न हो , पर परिणाम कुछ नहीं । सवाल ये है कि आखिर हम ऐसे क्यों है ? आखिर हम कब सोच के दायरे को बढा कर दुसरों की खुशियों के बारे में सोचेंगे ?

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