Monday, May 30, 2011

पेंसिल....चांद और समय


पेसिंल चांद और समय........इन तीनों शब्दों का मेरे जीवन में ही बड़ी ही महत्व हैं.....इन तीनों शब्दों एक साथ लिखने पर मुझे अपने ब़चपन के दिन याद आ गए....बचपन में अक्सर गर्मियों की छुटटी बिताने के लिए.... अपने ननिहाल यानि कि मामा के घर चला जाता था....मेरे मामा रात के समय घर के आंगन में सोए करते थे....मैं भी घर के आंगन मे लेटा हुआ चांद को देखकर...हमेशा अपने मामा से एक ही सवाल करता था....मामा चांद के अंदर ये काला सा धब्बा क्यों दिखाई देता हैं....मामा का हमेशा एक ही जवाब होता था.....कि बेटा कलयुग हैं...इसलिए चांद भी थोड़ा सा काला हो गया हैं....मामा के जवाब से मैं कभी संतुष्ट नही होता था...रात के अंधेरे में लालटेन की रोशनी मेंअक्सर मैं पेंसिल से कागज पर चांद की तस्वीर बनाने की कोशिश करता....पर मुझे कभी भी सुंदर और चमक बिखेरने वाले चांद में वह काला सा धब्बा बनाना अच्छा नहीं लगता....शायद बचपन से ही चांद के साथ मेरा गहरा लगाव हैं...समय बीतता गया...लेकिन मेरा चांद के साथ वैसा ही रिश्ता है...जैसा बचपन में सबका हुआ करता था....मैं अभी भी...जब भी परेशान होता हूं...चांद की तरफ देखता हूं तो चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है। पता नहीं ऐसा क्यों...लेकिन लगता है समय के साथ मुझे मानो चांद से प्यार हो गया है।

....मैं जबसे घर से नौकरी करने के लिए बाहर निकला हूं...उस अकेलेपन में चांद ही मेरादोस्त बन गया है। ठीक चांद ही की तरह बचपन में मेरी एक औऱ गहरी दोस्त हुआ करती थी....पेंसिल....बचपन में समय के साथ पेंसिल से नाता टूटा औऱ उसकी जगह कब बॉल पैन ने ले ली पता ही नहीं चला। लेकिन पेंसिल का इस्तेमाल मैं अब भी कभी – कभी करता हूं....औऱ चांद को देखकर अनायास ही मुझे वो दिन याद आ जाते हैं....जब पापा मुझे जन्मदिन पर तोहफे में ड्रांइगसीट व पेंसिल दिया करता थे...औऱ मैं शीट पर चांद की बेदाग तस्वीर उकेरने की कोशिश किया करता था। वो तोहफे मेरे लिए अनमोल थे....जिन्हें मैंने आज भी संभाल कर रखा हुआ है...औऱ ये तोहफे मुझे पापा की याद दिला देते हैं....लेकिन कहते हैं कि समय किसी का नहीं होता....पेंसिल भी है....चांद भी है.....वो ड्राइंग शीट भी है.....लेकिन समय में मुझसे मेरे पापा को छीन लिया....औऱ मैं अब आसमां में चांद को देखकर उसके आफ पास चमकते तारों में अपने पापा को खोजने की कोशिश करता हूं....ऐसे में ये शब्द मेरे मुंह से निकल जाते हैं.......चिट्ठी न कोई संदेश.......जाने वो कौन सा देश....जहां तुम चले गये.....जहां तुम चले गये..............।