Wednesday, July 29, 2009
ये कैसी जल्दी ?
मु़झे टीवी प़त्रकारिता े फील्ड में आए महज एक साल हुए हैं। दास्तों एक साल से मन में एक ही सवाल घुम रहा है ,आखिर ये कैसी जल्दी है ? जल्दी के चक्कर में कई बार गलत खबर ही ब्रेक कर दी जाती है , शायद ये सब टी आर पी के कारण होता है ,पर ऐसी टी आर पी का क्या मतलब ? कई बार अपने प्रतियोगी चैनल के पीछे करने की होड में विजुअल तक गलत आंन एयर कर दिए जाते है । न्यूज रूम के अंदर एक ही आवाज गुंजती है , काटो३ काटो३ काटोदोस्तों जो भी गडबड होता है काटो काटो के कारण ही होता है । मेरा मानना है कि सनसनी से ज्यादा समझ जरूरी है , प्रतियागिता इतनी ज्यादा बढ गई है कि कई बार ये समझ में नही आता है कि ,आखिर हम क्या दिखा रहा है । खबरों के जल्दी दिखाने से बेहतर होगा कि हम खबरों को सही आकलन कर दिखाएं , सनसनी फैलाने से क्या मिल रहा है ं। ये बात सही है कि बाजारवाद के इस युग में पत्रकारिता प्रभावित हुई , परंतु पत्रकारिकता के जीवित रखना है तो खबरों के साथ कोई समझौतानकरें । पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि आजकल इन मीडियों संस्थानों की बागडोर मीडिया के दलालों के हाथ में है , जिनका मकसद केवल पैसा कमाना है ।यदि ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों बाद प़त्रकारिता खत्म हो जाएगी,खबरों का समझौता होता रहेगा और दलालों के झोली भरती रहेगी ।
ये कैसी जल्दी ?
मु़झे टीवी प़त्रकारिता े फील्ड में आए महज एक साल हुए हैं। दास्तों एक साल से मन में एक ही सवाल घुम रहा है ,आखिर ये कैसी जल्दी है ? जल्दी के चक्कर में कई बार गलत खबर ही ब्रेक कर दी जाती है , शायद ये सब टी आर पी के कारण होता है ,पर ऐसी टी आर पी का क्या मतलब ? कई बार अपने प्रतियोगी चैनल के पीछे करने की होड में विजुअल तक गलत आंन एयर कर दिए जाते है । न्यूज रूम के अंदर एक ही आवाज गुंजती है , काटो३ काटो३ काटोदोस्तों जो भी गडबड होता है काटो काटो के कारण ही होता है । मेरा मानना है कि सनसनी से ज्यादा समझ जरूरी है , प्रतियागिता इतनी ज्यादा बढ गई है कि कई बार ये समझ में नही आता है कि ,आखिर हम क्या दिखा रहा है । खबरों के जल्दी दिखाने से बेहतर होगा कि हम खबरों को सही आकलन कर दिखाएं , सनसनी फैलाने से क्या मिल रहा है ं। ये बात सही है कि बाजारवाद के इस युग में पत्रकारिता प्रभावित हुई , परंतु पत्रकारिकता के जीवित रखना है तो खबरों के साथ कोई समझौतानकरें । पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि आजकल इन मीडियों संस्थानों की बागडोर मीडिया के दलालों के हाथ में है , जिनका मकसद केवल पैसा कमाना है ।यदि ऐसा ही चलता रहा तो कुछ सालों बाद प़त्रकारिता खत्म हो जाएगी,खबरों का समझौता होता रहेगा और दलालों के झोली भरती रहेगी ।
Tuesday, July 28, 2009
सच का नाटक
आपके षादी से पहले कितनी महिलाओं के साथ षारिरिक संबंध रहें हैं?
क्या आप कच्ची उम्र में ही गर्भवती हो गई थी ?
आपको लग रहा है ये क्या लिख रहा है , दोस्तों कुछ इसी तरह के सवाल पुछे जा रहे है ‘सच का सामना ’रिएलिटी षो में । क्या आपने कभी सोचा है , इस तरह के सवाल पुछने का मकसद क्या होगा ? इस तरह के सवाल से लोगों का घर ही बर्बाद होगें। न जाने , विदेषों में ही कितनों के घर तोड़ने के बाद अब ये षो भारत में आया । आखिर ये सवाल हैं कि क्या से सचमुच ‘सच का सामना ’है? सच का माने तो यंे षो अमेरिका का है, कुछ अमीरजादों का है ,कुछ असामजिक लोगों को है ,पर सवाल ये है कि इसका आधे भारत से क्या वास्ता है जो गरीब है । हमारा दुर्भाग्य है कि चंद पैसों के चक्कर में हम सभ्य समाज का खराब करने का प्रयास कर रहे है ,नइ्र्र पीढी को भेट कर रहे है ।
खुद अमेरिका में इस षो की आलोचना हुई है ,यहां कई प्रतिभागियों के घर टूट चुकें है । ये हिंदुस्तान है ,अमेरिका या युरोप नहीं ,जो इस तरह के घटिया षो प्रसारित किया जाएं। जीवन में सच कई तरह के होते है ,परंतु ऐसे सच का क्या मतलब जिससे जीवन ही बर्बाद हो जाए । यह भी एक विडंबना है कि देष के नीति निर्धारक रोक की मांग तब करते है जब यह कार्यक्रम या घटना घर घर तक पहुंच चुका होता है ।सरकार को प्रसारण पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए था। वैसे भी भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंत़त्रता है साथ ही वह भारत की संप्रभुता ,अंखडता , राज्य की सुरक्षा संरक्षित करने के लिए बाध्य भी करती है । इस लिहाज से सदाचार व सभ्य आचरण बिगाडने के लिए इस कार्यक्र्रम को दोशी ठहराया जा सकता है ,चाहे इसमें कितना ही सच समाहित हो । यदि भारत सरकार को जरा सा भी भारतीयता का अहसास है तो तुरंत ही इस ‘सच का सामना‘ या फिर सच का नाटक पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
क्या आप कच्ची उम्र में ही गर्भवती हो गई थी ?
आपको लग रहा है ये क्या लिख रहा है , दोस्तों कुछ इसी तरह के सवाल पुछे जा रहे है ‘सच का सामना ’रिएलिटी षो में । क्या आपने कभी सोचा है , इस तरह के सवाल पुछने का मकसद क्या होगा ? इस तरह के सवाल से लोगों का घर ही बर्बाद होगें। न जाने , विदेषों में ही कितनों के घर तोड़ने के बाद अब ये षो भारत में आया । आखिर ये सवाल हैं कि क्या से सचमुच ‘सच का सामना ’है? सच का माने तो यंे षो अमेरिका का है, कुछ अमीरजादों का है ,कुछ असामजिक लोगों को है ,पर सवाल ये है कि इसका आधे भारत से क्या वास्ता है जो गरीब है । हमारा दुर्भाग्य है कि चंद पैसों के चक्कर में हम सभ्य समाज का खराब करने का प्रयास कर रहे है ,नइ्र्र पीढी को भेट कर रहे है ।
खुद अमेरिका में इस षो की आलोचना हुई है ,यहां कई प्रतिभागियों के घर टूट चुकें है । ये हिंदुस्तान है ,अमेरिका या युरोप नहीं ,जो इस तरह के घटिया षो प्रसारित किया जाएं। जीवन में सच कई तरह के होते है ,परंतु ऐसे सच का क्या मतलब जिससे जीवन ही बर्बाद हो जाए । यह भी एक विडंबना है कि देष के नीति निर्धारक रोक की मांग तब करते है जब यह कार्यक्रम या घटना घर घर तक पहुंच चुका होता है ।सरकार को प्रसारण पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए था। वैसे भी भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंत़त्रता है साथ ही वह भारत की संप्रभुता ,अंखडता , राज्य की सुरक्षा संरक्षित करने के लिए बाध्य भी करती है । इस लिहाज से सदाचार व सभ्य आचरण बिगाडने के लिए इस कार्यक्र्रम को दोशी ठहराया जा सकता है ,चाहे इसमें कितना ही सच समाहित हो । यदि भारत सरकार को जरा सा भी भारतीयता का अहसास है तो तुरंत ही इस ‘सच का सामना‘ या फिर सच का नाटक पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
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